देशमथुराराजनीतीवृन्दावनसुधीर के बोल

देश के ज्वलनशील मुद्दे व स्टेडियम का नामकरण की उपयोगिता।

सुधीर के बोल:- मेरे देश का दुर्भाग्य

संसद के मानसून सत्र में लोकतंत्र प्रतिदिन शर्मसार हो रहा है, परन्तु राजनेता घटियापन कर जनता के वोट का रोज खून कर रहे है। सत्तापक्ष का दायित्व है कि देशवासियों में हाहाकार मचा हुआ है उन मुद्दों पर तत्काल चर्चा हो। परन्तु जब जनता महंगाई, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, सुरक्षा से त्रस्त है, तब देश में मुद्दा है स्टेडियम का नामकरण। क्या समस्याओं से ध्यान हटाने के लिये यह गैर जरूरी कार्य किये जा रहे है?
अगर मान भी लिया जाए की नया नामकरण अन्य समस्याओं से अधिक आवश्यक है तब आपको व्यवस्था ही बदलनी है तो यह टुकड़ों में क्यों बदली जा रही है?
स्टेडियम का सीधा लॉजिक खिलाड़ियों से होता है, धन जनता का लगा हुआ है, तब यह राजनेता बीच में कहाँ से आ जाते है, बदल दो सारे राजनेताओं के नाम।

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स्टेडियम पर प्रादेशिक खिलाड़ियों के नाम पर कर देने चाहिए।

आपको हास्यपद कुछ बानगी दिखाते है।
अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम नरेंद्र मोदी के नाम पर है। कौन सा खेल खेलते आये है यह जनाब?

जवाहर लाल नेहरू के नाम पर देश में 9 स्टेडियम, अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी देश में 2 क्रिकेट स्टेडियम है, इंदिरा गांधी के नाम पर भी देश में 3 एरिन हैं- गुवाहाटी, नई दिल्ली और विजयवाड़ा। खेल में क्या योगदान है?

2019 में नई दिल्ली के फिरोज शाह कोटला स्टेडियम का नाम बदलकर अरुण जेटली स्टेडियम किया गया। नोटबंधी कोई खेल तो नहीं?

सबसे खास बात यह है कि भारत में किसी भी क्रिकेटर के नाम पर कोई भी क्रिकेट स्टेडियम नहीं है।

नाम बदलने में अगर राजनीति नही होती तो सर्वप्रथम
ब्रिटिश राज के अधिकारियों के नाम पर जो स्टेडियम है उन्हें बदला जाता। जैसे मुंबई का ब्रेबोर्न स्टेडियम बॉम्बे के गवर्नर जनल रहे लॉर्ड ब्रेबोर्न के नाम पर है। इसी तरह कोलकाता का ऐतिहासिक ईडन गार्डंस का नाम ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड ऑकलैंड की बहनों एमिली ईडन और फैनी ईडन के नाम पर है।

जिनका देश गुलाम रहा , देश को लूटा, अत्याचार किये उनका नाम सही है?

जनता राजनीति विद्वेष से किये गए कार्यों को समझती है, संसद में देश के महत्त्वपूर्ण कार्यो पर चर्चा का माहौल बनाना चाहिए, जनता के हित मे कार्य करने चाहिए, देशवासी संकट मे है। अभी एक स्टेडियम नाम बदलना अनावश्यक कदम है। जब आप देश की जनता द्वारा अंतरराष्ट्रीय पर सफलता की बधाई देने का अधिकार रखते हो तो देश के 300 किसानों की सरकारी अव्यवस्था के चलते मृत्यु पर फोन करके शोक सवेदना व्यक्त करने का दायित्व भी है। आपको अच्छे व बुरे दोनों का क्रेडिट लेना ही होगा।

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