*सुधीर के बोल:- ‘मन और मृत्यु का सम्बंध’ के रहस्य पर प्रकाश डालाता आलेख* *जब हम अपने ही विरुद्ध नकारात्मक विचारों से भर जाते हैं, तब हमारे जीवन रक्षक जीवाणु हमारे शत्रु बन जाते हैं, और हम असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।* *लिंक पर क्लिक कर पढ़े पूरा आलेख क्या है मन और मृत्य का रहस्य*

सुधीर के बोल :- कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में देखने को मिल रहा है 50+ व अस्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु के अलावा 30+ स्वस्थ युवा भी काल के गाल में समा रहे है।
वर्तमान स्तिथि से जनमानस में घबराहट व बेचैनी बढ़ गयी है जिससे व्यक्ति कोरोना के साथ मानसिक डर के रोग से ग्रसित हो रहा है जिसके कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो रहा है।
मानसिकता शरीर पर कैसे प्रभाव डालती है? इसके विषय में, मैंआपको जानकारी देता हूँ। आप शाररिक रोग से ग्रसित हो या न हो परन्तु आपके गहरे मन पर यह बात अंकित हो जाये कि आप किसी ऐसे रोग से ग्रसित है जिससे मृत्यु हो जाती है तब आपके शाररिक जीवाणु हड़ताल पर चले जाते है या बागी हो कर विषाणु का साथ देकर आप पर हमलावर हो जाते है क्योंकि आपके शाररिक जीवाणु जो आपके सैनिक के रूप में आपकी रक्षा करते है (जिसे चिकित्सक रोग प्रतिरोधक शक्ति कहते है )
हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता हमें बीमारियों से सुरक्षित रखती है। यह जटिल नेटवर्क ही वो हथियार है जो हमारे शरीर को बीमारियों और संक्रमण से सुरक्षित रखता है।
ज़रूरी नहीं है कि हमारा इम्यून सिस्टम बढ़ती उम्र के समानुपात में ही कमज़ोर होगा।
इसरायल के टेक्नियोन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में इम्यूनोलॉजिस्ट शाई शेन-ऑर ने शोध में पाया ऐसे कई लोगों को जानते हैं जोकि 80 साल के हैं लेकिन उनका इम्यून सिस्टम 62 साल का है. कई मामले इसके बिल्कुल उलट भी होते हैं।
इम्युन सिस्टम की दो शाखाएं हैं. हर एक शाखा अलग प्रकार की श्वेत रुधिर कोशिकाओं (डब्ल्यूबीसी-व्हाइट ब्लड सेल्स) से बनी होती है. ये कोशिकाएं विशेष तौर पर हमारे शरीर की सुरक्षा के लिए काम करती हैं.
जन्मजात रोग-प्रतिरोधक प्रतिक्रिया हमारे शरीर की सुरक्षा के लिए प्राथमिक तौर पर उत्तरदायी होती हैं. जैसे ही हमारे शरीर में कोई बाहरी चीज़ या रोगाणु प्रवेश करता है, हमारा इम्युन सिस्टम एक्टिव हो जाता है पर यह इम्यून सिस्टम आपके मानसिक चित्त से जुड़े रहते है उनके पास आपके मन के विचारानुसार आदेश को पालन करने की क्षमता भर की बुद्धि होती है। जब आप अपने ही विरुद्ध विचारों से भर जाते है तब हमारे जीवनरक्षक जीवाणु हमारे नकारात्मक विचारों को हमारा आदेश मान कर उनका पालन करने में तेज़ी से सक्रिय हो जाते है तब हमारे विरुद्ध बाहरी विषाणुओ को बागी जीवाणुओं का साथ मिल जाता है और हम जीवन की लड़ाई बिना लड़े तत्काल हार जाते है।
अभी तक दुनियाभर के चिकित्सक मात्र शरीर पर ही शोध किये जा रहे है उनके अनुसंधान केवल भौतिक शरीर तक सीमित है अर्थात हार्डवेयर तक है उसे चित्त के सॉफ्टवेयर से रिलेट नही कर पाएं है।
इस प्रतिक्रिया में न्यूट्रोफ़िल्स होते हैं. जो मुख्य तौर पर बैक्टीरिया पर हमला करते हैं। मोनोसाट्स इम्युन सिस्टम को व्यवस्थित करने में मदद करते हैं और साथ ही ये दूसरी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमण के ख़िलाफ़ अलर्ट करने का भी काम करते हैं इतनी ही खोज हो पायी है, जब कि शरीर का सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थ मननुसार गति करता है। जिस दिन चिकित्सक मन रूपी सॉफ्टवेयर पर प्रोग्रामिंग करने में सफल होंगे तब शाररिक रोगों को ठीक करने में अपार सफलता मिलेगी। हमारे शास्त्रों में शाररिक के साथ साथ वैचारिक शुद्धता पर अधिक जोर डाला गया है उसका यही कारण है।
कैंसर से कोरोना तक कि लड़ाई में वह व्यक्ति जीत हासिल कर पाया है जो मानसिक रूप से प्रबल व शक्तिशाली है। मानसिक शक्ति ध्यान से चमत्कारिक रूप से प्राप्त होती है, परन्तु समस्या यह आज का व्यक्ति के पास ध्यान में शून्य तक पहुँचने की शांति नही है वह इस सूचनाओं के दौर में निरंतर फ़िजूल की बातों में अशांत है, आज मोबाइल जैसे यन्त्र के साथ दुरुपयोग कर परनिंदक बन गया है सारे जगत में मोबाइल ने जितनी नकारात्मकता में वृद्धि की उतनी और किसी वस्तु से नहीं हुई। जब तक आप अनावश्यक विचारों से मुक्त नही होंगे तब तक ध्यान असंभव है जब ध्यान नही होगा तब बीमारी सर्दी की भी कोरोना का भय उत्पन्न कर मारने में सक्षम होगी।
इसलिये मैं बार बार अपने लेखों में बताता हूँ कि चित्त को शांत कर अपने आप में आनंदित रहे तब तक आपको कोई बीमारी प्रभावित नही कर सकती जब तक आप स्वयं के साथ हो।