सुधीर के बोल :- देश में एक भी मर्द नेता नहीं, सारा सिस्टम शिखंडी बना है।
सुधीर के बोल :-
जहाँ कोविड के कारण पूरा भारत त्रस्त है वहाँ हमारे सारे नेता मस्त है। ड्रामा जनता के हितैषी होने का है पर सत्ता के लिए यह भांड बने फिरते है। इनका दोहरा चरित्र यह की लाखों की भीड़ में मुजरा करते अपनी शक्ल पर मास्क नहीं लगाते और जनता को अकेले कार में भी मास्क अनिवार्य है। चुनाव क्षेत्रों में न तो कोई सेफ़्टी प्रोटोकॉल अपनाया जा रहा था और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। डिजिटल युग में एक भी मर्द नेता नही देश मे जो यह कह सकें कि वर्चुअल रैली करेंगे और वोटिंग के लिए ATM कार्ड से वोट का विकल्प भी देंगे, चुनाव आयोग की नीति तो दुर्योधन की तरह हो गयी जो जनता रूपी द्रोपती को निःवस्त्र देखने को आतुर है।
अरे शिखंडियो सीख लेनी हो तो नॉर्वे से ले लो जहाँ नियम था की 10 व्यक्ति से अधिक एकत्र नही होंगे और वहाँ की प्रधानमंत्री ने 13 व्यक्तयों को एक समारोह में बुला लिया तो वहाँ की पुलिस ने 20 हज़ार नॉर्वेजियन का जुर्माना यह कहते हुए लगाया कि यह आम आदमी की गलती होती तो इतना जुर्माना नही लगता चूँकि आप प्रधानमंत्री हो तो आपको अधिक दंड मिलेगा।
कोविड काल मे लापरवाही का आलम यह कि अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैचों को देखने के लिए एक लाख 30 हज़ार दर्शकों को इजाज़त दे दी गई। इनमें से ज़्यादातर बग़ैर मास्क पहने आए थे।और फिर इसके एक महीने के अंदर मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया। भारत एक बार फिर कोरोना संक्रमण की गिरफ़्त में आ गया. कोरोना संक्रमण की यह दूसरी लहर बहुत ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो रही है और इसने भारत के शहरों को बुरी तरह जकड़ लिया है।
हमारे नेता गाल बजाने की प्रतियोगिता में ब्रम्हांड में अव्वल आएंगे परन्तु दुर्भाग्य से ऐसी प्रतियोगिता होती नही।
जनता तिल तिल कर मर रही है और न्यायपालिका आयोग और तमाम जिम्मेदार पद दूरगामी व मज़बूत कदम उठाने के बजाए चुनाव में व्यस्त है। भोली जनता को हर चुनाव में ढगने का यह उत्सव होता है और हर बार पहले से बड़ा ठग पल्ले पड़ता है।