दुनियाधर्मसुधीर के बोल

क्या 12 वर्ष उपरांत “कुंभ” भव्य पंडाल और धार्मिक मनोरंजन का मात्र उद्देश्य है? किसका कितना ऐश्वर्यपूर्ण पंडाल होगा उसे ही सबसे बड़ा अखाड़ा, सम्प्रदाय, मठ का तमगा मिलेगा?

सुधीरकेबोल :- सत्ता अधिकतर निर्दयी होती है कभी कभी कोई पांडव लालबहादुर शास्त्री या कलाम जैसे लोग सत्ता के शिखर तक दुर्घटनावश पहुँच पाते है। आज वृंदावन में वैष्णव कुंभ को धार्मिक इवेंट की तर्ज पर आयोजित किया जा रहा है। प्राचीन परम्पराओं को ध्वस्त किया जा रहा है।

क्या 12 वर्ष उपरांत “कुंभ” भव्य पंडाल और धार्मिक मनोरंजन का मात्र उद्देश्य है? किसका कितना ऐश्वर्यपूर्ण पंडाल होगा उसे ही सबसे बड़ा अखाड़ा, सम्प्रदाय, मठ का तमगा मिलेगा, सनातन को आज की परिस्थितियों में कैसे बेहतर तरीके से प्रयोग करना है यह कुंभ में एकत्र होकर एक निर्णय पर पहुँच कर समाज को दिशा दी जाती थी परन्तु यह दशकों पुरानी बात हो गयी। जिस प्रकार प्रगति मैदान दिल्ली में ट्रेड फेयर आयोजित किया जाता है क्या यह भी उसी तर्ज पर नहीं होने की दिशा में है। वहाँ उत्पाद की मार्केटिंग होती है यहाँ इमोशन की मार्केटिंग धर्म की चाशनी में लपेट कर परोसा जाता है।

एक सवर्ण जाति भी इस आयोजन में भागीदारी करती है अपने जाति के उत्थान के उद्देश्य से परन्तु उसका सारा उद्देश्य पर प्रश्नचिन्ह तब लग जाता है जब उसका सारा धन टेंट, हलवाई, साउंड, आदि के अन्य जाति के व्यक्तियों के उत्थान में लग जाता है सिवाय अपने जाति के व्यक्तियों को छोड़ कर। यह कैसा जातिगत व्यवस्था है? कोई भी ठोस कार्य न करके तत्कालीन प्रचार के लिये तो अच्छा है बाकी निर्रथक है।

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करोड़ो अरबों का आयोजन अपना मूल उद्देश्य भूलकर कुंभ राजनीति की भेंट चढ़ने की ओर अग्रसर है। कुंभ से सत्ता वोट पाना चाहती है महंत संत शिष्य व प्रतिष्ठा चाहते है। परम्परा गयी गर्त में।

पाखंड का प्रमाण यह कि जिस यमुना के तट पर यह आयोजन हो रहा है उसी यमुना की हत्या पर सब मौन है।

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