कौन धार्मिक व्यक्ति धर्म के चोले में नास्तिक बन ऐश्वर्य भोग रहा है?

#सुधीर_के_बोल : आज विश्व में धर्मों को लेकर विवाद चरम पर है, धर्म के आधार पर सत्ता मिल रही है फिर राष्ट्राध्यक्ष धर्म के आधार पर समूहों में बंट गए है।
अर्थात धर्म ताक़तवर बनने का प्रमुख हथियार है। यह ताकत अहंकार को पोषित करता है।
तुमने धर्मों के विरोधी बातें तो सूनी होंगी—हिंदू, मुसलमान, ईसाई और बौद्ध में बंटे हुए देश है।
परन्तु नई पीढ़ी जो तकनीकी से लैस है वह धर्मो की चर्चा नहीँ करते, वह अधिकतर धार्मिक एजेंडे को पाखण्ड मानते है। अभी राजनीतिज्ञों को खबर नहीं है कि आने वाले दिनों में विश्व मे केवल दो समूह रहेंगे एक आस्तिक और दूसरे नास्तिक।
जब आस्तिक स्वयं के अनुभव से नए ग्रथों की रचना करने असक्षम हो जाते है अर्थात लिखे हुए ग्रंथ जो दूसरों के अनुभवों पर आधारित है, उनका यशोगान करना असली आस्तिक होने का प्रमाण नहीं है। ऐसे तथाकथित आस्तिकों को तकनीकी से लैस पीढ़ी स्वीकार नहीं करेगी और वह चार्वाक के दर्शन को अपनाना पसंद करेंगी।
चार्वाक की प्रसिद्ध उक्ति
यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये । ऋण करके भी घी पिये। अर्थात् सुख-भोग के लिए जो भी उपाय करने पड़ें उन्हें करे । दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख-साधन जुटाने में हिचके नहीं । परलोक, पुनर्जन्म और आत्मा-परमात्मा जैसी बातों की परवाह न करे । भला जो शरीर मृत्यु पश्चात् भष्मीभूत हो जाए, यानी जो देह दाहसंस्कार में राख हो चुके, उसके पुनर्जन्म का सवाल ही कहां उठता है।
कोई धार्मिक हो या अधार्मिक पर विश्व में उपरोक्त चार्वाक के दर्शन का पालन करने वाले चहुँओर दिखेंगे। अभी लोग समाज के डर के कारण खुलेआम नास्तिक होने की घोषणा नहीं करते, वैसे विचार और कर्म सब नास्तिकों जैसे ही है। कोई नर्क और नर्क के दण्ड से भयभीत नहीं है।
आने वाली पीढ़ी मौजूद पीढ़ी से सच्ची होगी जो कम से कम पाखण्ड के विपरीत खुलकर घोषणा तो करेगी कि हम नास्तिक है।
नास्तिक प्रथम सीढ़ी है शुद्ध आस्तिक बनने की। जब आस्तिक स्वयं के अनुभवों से आस्तिक होने की प्रक्रियाओं से गुजरेगा तब वह वेदों की ग्रंथो की रचनाएं करने में सक्षम होगा और वह प्रमाणित आस्तिक होगा।
आज धर्मों के बीच समन्वय करने की आवश्यकता नहीं है, असली समन्वय अगर कही करना है तो नास्तिक और आस्तिक के बीच, पदार्थ और परमात्मा के बीच, चार्वाक और अष्टावक्र के बीच करना है। मै तुम्हें उसी असली समन्वय की बात कर रहा हूं। जिस दिन नास्तिकता मंदिर की सीढी बन जाती है। उस दिन समन्वय हुआ। उस दिन तुमने जीवन को इक्ट्ठा करके देखा, उस दिन द्वैत मिटा।
चार्वाक की वाणी मधुर है, इसलिए चार्वाक नाम पडा। चार्वाक का अर्थ होता है मधुर वाणी वाला। उसका दूसरा नाम है: लोकायत। लोकायत का अर्थ होता है। जो लोक में प्रिय हो, जो अनेक को प्रिय है। लाख तुम कहो ऊपर से कुछ, कोई जैन है, कोई बौद्ध है, कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है। यह सब ऊपरी बकवास है, भीतर गौर से देखो, चार्वाक को पाओगें। अधिकांश मनुष्य धर्म के वस्त्रों के भीतर नास्तिकता चरित्र लिए हुए है और चार्वाक का चेला है।
सूख जीवेत, चार्वाक कहता हे: सुख से जीओ, इतना में जरूर कहूंगा कि चार्वाक सीढ़ी है। और जिस ढंग से चार्वाक कहता हे। उस ढंग से सुख से कोई जी नहीं सकता। क्योंकि चार्वाक ने ध्यान का कोई सुत्र नहीं दिया। चार्वाक सिर्फ भोग है, योग का कोई सुत्र नहीं है अधूरा है। उतना ही अधूरा है जितने अधूरे योगी है, उनमें योग तो है लेकिन भोग का सूत्र नहीं है। इस जगत में कोई भी पूरे को स्वीकार करने का साहस नहीं करता —आधे-आधे को। मैं दोनो को स्वीकार करता हूं। और मैं कहता हूं: चार्वाक का उपयोग करों और चार्वाक के उपयोग से तुम एक दिन अष्टावक्र के उपयोग में समर्थ हो पाओगें। क्योंकि भोग मन की वासना मात्र है, भोग संशय है और जब तक संशय समाप्त न होगा तब तक योग को प्राप्त न हो पाओगे। योग की प्राप्ति में भोग बाधा है।
जीवन के सुख को भोगों। उस सुख में तुम पाओगें, दुःख ही दुःख है। जैसे-जैसे भोगोगे वैसे-वैसे सुख का स्वाद बदलने लगेगा और दुःख का आभास होने लगेगा और जब एक दिन सारे जीवन के सभी सुख दुःख एकरूप हो जाएंगे,उस दिन तुम जागने के लिए तत्पर हो जाओगे। इस दिन कोई तुम्हें रोक सकेगा? उस दिन तुम जाग ही जाओगे। कोई रोक नहीं रहा है। रुके इसलिए हो कि लगता है शायद थोड़ा और सो ले। कौन जाने…..एक पन्ना और उलट लें संसार का। इस कोने से और झांक लें। इस स्त्री से और मिल लें। उस शराब को और पी लें। कौन जाने कहीं सुख छिपा हो, सब तरफ तलाश ले।
मैं कहता भी नहीं कि तुम बीच से भागों। बीच से भागे, पहुंच न पाओगें,क्योंकि मन खिचता रहेगा। मन बार-बार कहता रहेगा। ध्यान करने बैठ जाओगे, लेकिन मन में प्रतिमा उठती रहेगी उसकी, जिसे तुम पीछे छोड़ आए हो। मन कहता रहेगा। क्या कर रहे हो मूर्ख बने बैठे हो। पता नहीं सुख वहां होता है। तुम देख तो लेते, एक दफा खोज तो लेते।
चार्वाक की पुस्तक पूरी पढ़ ही लो, क्योंकि कुरान, गीता,और बाईबिल उसी के बाद शुरू होते है। चार्वाक पूर्वार्ध है, अष्टावक्र उत्तरार्ध।
चार्वाक नास्तिकता है, अष्टावक्र धार्मिकता है।