यूपी में एमएलसी चुनाव की अचानक घोषणा से बढ़ी सियासी दलों की चुनौती, रार बढ़ने के आसार।

केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने विधानसभा आम चुनावों के साथ विधान परिषद के 36 सदस्यों के चुनाव का एलान कर राजनीतिक दलों की चुनौती बढ़ा दी है। एक साथ दो-दो चुनावों का सामना करने के लिए राजनीतिक दल तैयार नहीं थे।
प्रदेश में स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित होने वाले 36 सदस्यों का कार्यकाल सात मार्च को समाप्त हो रहा है। इनमें ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत सदस्यों के साथ शहरी निकायों के प्रतिनिधि मतदान करते हैं। ये चुनाव पिछले वर्ष कराने की अटकलें थीं, जब सदस्यों काकार्यकाल छह महीने बाकी था। पर, कोविड व अन्य कारणों से संभव नहीं हुआ। विधानसभा चुनाव का एलान होने से दल निश्चिंत थे, कि अब यह बाद में ही होंगे। मगर, शुक्रवार को अचानक इसका एलान कर दिया गया।
जानकार बताते हैं कि प्रदेश के राजनीतिक दल, खासकर भाजपा और सपा विधानसभा चुनाव में सहयोगी दलों से समझौते, दलबदल की धमाचौकड़ी के बीच टिकट बंटवारे व टिकट न मिलने से असंतुष्ट नेताओं की चुनौती का पहले से ही सामना कर रहे हैं। तमाम असंतुष्टों को परिषद सीटों पर लड़ाने का आश्वासन देकर विधानसभा चुनाव में जुटने का आग्रह किया जा रहा था। मगर, इस चुनाव के एलान से दलों का समीकरण गड़बड़ा गया है। अब परिषद के प्रत्याशी भी तय करने की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इससे दोनों ओर असंतुष्टों की बड़ी फौज बढ़ सकती है।
एमएलसी चुनाव में बढ़ी चुनौती
एमएलसी चुनाव में ग्रामीण व शहरी निकायों के प्रतिनिधि मतदान करते हैं। विधानसभा चुनाव में ये प्रतिनिधि राजनीतिक दलों की बड़ी ताकत के रूप में काम करते हैं। दोनों चुनाव साथ होने से इनकी सक्रियता विधानसभा चुनाव की अपेक्षा विधान परिषद चुनाव में बढ़ जाएगी।
मतदाता सीमित संख्या में होते हैं। उनका समर्थन लेने के लिए स्थानीय प्रभावशाली लोगों की अहम भूमिका होती है। विधानसभा चुनाव में भूमिका सीमित होगी।
प्रत्याशी कद्दावर लोग होते हैं। इनमें तमाम विधानसभा टिकट के दावेदार होते हैं। ये अपने चुनाव में व्यस्त होंगे, जिसका असर विधानसभा चुनाव वाले प्रत्याशियों पर पड़ेगा। वहीं, विधायक प्रत्याशी इनकी मदद नहीं कर पाएंगे।
दोनों चुनाव एक साथ होने से दो-तरह के चुनाव प्रबंधन की चुनौती सामने आ गई है।
सपा-भाजपा के बीच यहां भी तगड़ी जोर आजमाइश
100 सदस्यीय परिषद में वर्तमान में सपा 48 सदस्यों के साथ बहुमत में है। दूसरे नंबर पर रही भाजपा के 36 सदस्य हैं। जिन 36 सदस्यों के लिए चुनाव हो रहे हैं उनमें करीब 30 सीटें सपा के कब्जे वाली हैं। जो भी पार्टी ज्यादा सदस्य जिता पाएगी, परिषद में उसका दबदबा बढ़ जाएगा।