यमुना का दर्द न जाने कोय, हिन्दू नेता, मठाधीश, धार्मिक वक्ता सभी ने अपने पाप धोय। पर यमुना का दर्द न जाने कोय।।

मथुरा भाजपा एमपी और अभिनेत्री हेमा मालिनी 2019 में चुनाव लड़ने से पूर्व कहा था वह यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का संकल्प लेने के लिए एकबार फिर चुनावी मैदान में है।
भाजपा के सभी नेताओं ने ‘कालिंदी’ के कलुष को धोने का संकल्प लिया परंतु नतीजा सबके सामने है।
श्रीकांत और हेमा ही क्यों, यमुना तो पिछले 25 साल से अपना कलुष धुलने के इंतजार में है। इस बीच कितने नेताओं ने यमुना का जल हाथ में लेकर वचन दिया कि वह पतित पावनी को प्रदूषण मुक्त करायेंगे किंतु यमुना से ज्यादा प्रदूषित वो खुद हो गए।
जिस तरह अब उन्हें यमुना का प्रदूषण दिखाई नहीं देता, उसी तरह अपने वायदों पर लगी कालिख भी नजर नहीं आती।
10 जुलाई 1998 के दिन एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए शासन-प्रशासन को तमाम दिशा-निर्देश दिए। इन दिशा-निर्देशों में कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) से चंद कदम दूरी पर किए जाने वाले पशुवध को नई पशुवधशाला का निर्माण होने तक पूरी तरह बंद कराने, यमुना के जल में सीधे गिरने वाले मथुरा-वृंदावन के दर्जनों नाले-नालियों को टैप करने तथा जनपद भर में मांस की बिक्री बंद करने जैसे आदेश शामिल थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की किस तरह धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, यह जनता जानती है।
ऐसा ही हाल यमुना में गिरने वाले उन दर्जनों नालों का है जिन्हें टैप करने के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए थे। ये नाले तो कभी टैप नहीं हो पाए, हां इन्हें टैप करने के नाम पर करोड़ों का घोटाला जरूर कर लिया गया। भाजपा की चेयरपर्सन के कार्यकाल में हुए करीब 2 करोड़ रुपयों के एक ऐसे ही घोटाले का वाद न्यायालय में लंबित है।
अब जबकि मथुरा नगर पालिका, नगर निगम में तब्दील हो चुकी है और भाजपा के ही डॉ. मुकेश आर्यबंधु मेयर हैं तब भी यमुना में नाले गिरना बंद नही हो पाया है।
दिल्ली से लेकर लखनऊ तथा मथुरा तक भाजपा की सरकार है, फिर क्यों यमुना में गिर रहा है नालों का पानी।
नभचर एवं जलचरों के जीवन को ऑक्सीजन देने का काम करने वाली यमुना आज अपने लिए ऑक्सीजन के इंतजार में है। वह मृतप्राय हो चुकी है। जिस तरह सरकारी कागजों में यमुना की प्रदूषण मुक्ति के लिए दिए गए कोर्ट के समस्त आदेश-निर्देश काम कर रहे हैं, उसी तरह यमुना भी कागजों में बह रही है अन्यथा वह मृतप्राय है।
हर चुनाव में नेताओं की फौज आती है और यमुना के लिए घड़ियालू आंसू बहाकर अपना मकसद पूरा कर लेती है। कोई दिल्ली की गद्दी हथिया लेता है तो कोई यूपी की। स्थानीय स्तर पर भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो यमुना के प्रदूषण को राजनीति का हथियार बनाकर मलाई मारते रहे और एक-दो बार नहीं कई-कई बार लोकसभा तथा विधानसभा में जा बैठे, किंतु इन लोगों ने यमुना को धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया।
2022 के विधानसभा चुनावों में निश्चित ही यमुना को धोखा देने की एक और पटकथा लिखी जानी है।
चुनाव 2017 के मुकाबले कहीं अधिक कठिन होने की उम्मीद है इसलिए भ्रमजाल भी उतना ही बड़ा फैलाया जाएगा।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में गंगा नदी को ”जीवित मानव” का दर्जा दिया था। उस दृष्टिकोण से देखें तो युगों से यमुना को दिया गया कृष्ण की पटरानी का दर्जा सारगर्भित है।
2022 चुनाव कम से कम मथुरा में तो यमुना की लाश पर ही राजनीति करके लड़ा जाना है। यमुना की लाश पर तैरकर ही पूर्व में मंत्रीजी चुनावी वैतरणी पार करके विधानसभा पहुँचे थे, और इसी लाश को ट्यूब की तरह इस्तेमाल करके दोबारा जीत का परचम लहराना चाहते हैं। सभी ने अपने-अपने तरीके से इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है।
यदि यमुना को मैया कहने वाले ब्रजवासियों में ही अपनी मैया को लेकर वो दर्द नहीं है जो उसकी दुर्दशा पर राजनीति करने वालों को कोई सबक सिखा सकें तो मात्र चुनाव लड़ने के लिए यमुना का सहारा लेने वालों को दर्द क्यों होने लगा?
नेताओं को जब कोरोना काल मे मानव लाशों पर राजनीति करने से परहेज नहीं है तो एक नदी की लाश से परहेज कैसा?
तथाकथित मठाधीश, धर्म प्रवक्ता यमुना माँ की पीड़ा को अपने प्रवचनों में स्थान तक नहीं देते , न कभी आन्दोलित होते। केवल धर्म का उपयोग भोली भाली धर्मपरायण जनता को अपनी तिजोरी भरने के लिए पाखण्ड करते रहते है। आज आवश्यकता है कि वह अपने अंतर्मन से पूछे कि उनकी सरकार ने यमुना माँ के लिए कोई ठोस कदम उठाएं? यदि नहीं तो खुलेआम विरोध करने में संकोच क्यों?