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एक महीने के अंदर भाजपा के 11 विधायकों समेत 17 बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी, और कौन है छोड़ने की कतार में

पिछले महीने यानी 11 दिसंबर से लेकर आज 11 जनवरी के बीच भारतीय जनता पार्टी के 17 बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली है। इनमें योगी के एक कैबिनेट मंत्री समेत 11 विधायक भी शामिल हैं।

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स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद भाजपा के सात और विधायकों ने इस्तीफा देने का एलान कर दिया। इनमें रोशन लाल वर्मा, भगवती सागर, बृजेश प्रजापति, ममतेश शाक्य, विनय शाक्य, धर्मेंद्र शाक्य और नीरज मौर्य शामिल हैं। रोशन लाल वर्मा ही स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा लेकर राजभवन गए थे। इन इस्तीफों के बाद भाजपा से इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या 11 हो गई।

स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़ने वाले सबसे नए और बड़ा चेहरा हैं। योगी सरकार में सेवा योजना विभाग संभालने वाले मौर्य ने सपा का दामन थाम लिया है। भाजपा में आने से पहले वह बहुजन समाज पार्टी में थे। 2007 से 2012 के बीच वह मायावती की सरकार में मंत्री थे।
पहले इन तीन विधायकों ने छोड़ी थी पार्टी

1. बदायूं जिले के बिल्सी से भाजपा विधायक राधा कृष्ण शर्मा ने हाल ही में समाजवादी पार्टी जॉइन की है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात करने के बाद उन्होंने ट्विट कर अपनी फोटो भी शेयर की।

2. सीतापुर से बीजेपी विधायक राकेश राठौर भी अब सपा में शामिल हो चुके हैं। पेशे से व्यापारी राकेश राठौर ने अपना पहला चुनाव साल 2007 में बीएसपी के टिकट पर लड़ा था लेकिन चुनाव हार गए थे। 2017 में वह भाजपा से विधायक चुने गए थे।

3. बहराइच के नानपारा से विधायक माधुरी वर्मा ने भी भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। अखिलेश यादव ने खुद उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। बताया जाता है कि माधुरी वर्मा का भी भाजपा से टिकट कटने वाला था।

भाजपा के ये नेता भी अब सपाई हुए
यूपी की बलिया की चिलकलहर विधानसभा से भाजपा के पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम चुके हैं।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता जय प्रकाश पांडे अपने समर्थकों के साथ सपा में शामिल हो चुके हैं।
भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश महामंत्री अशोक कुमार वर्मा “गोपार” को भी अखिलेश यादव ने सपा की सदस्यता दिलाई थी।
भाजपा के टिकट पर प्रयागराज से चुनाव लड़ चुके शशांक त्रिपाठी भी सपाई हो गए हैं।
भाजपा के पूर्व एमएलसी कांति सिंह, प्रतापगढ़ से भाजपा के पूर्व विधायक ब्रजेश मिश्रा भी सपा में शामिल हो चुके हैं।

मौर्या और विधायकों के भाजपा छोड़ने के दो बड़े कारण

1. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर श्रीवास्तव कहते हैं, ‘स्वामी प्रसाद मौर्य को 2017 विधानसभा चुनाव से पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ही भाजपा में लेकर आए थे। केशव तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे और उन्होंने बड़े पैमाने पर गैर यादव ओबीसी नेताओं को पार्टी के साथ जोड़ने का काम किया था। हालांकि, जिस ताकत से स्वामी भाजपा में आए थे, उन्हें उतनी तवज्जो नहीं मिली।’

श्रीवास्तव आगे बताते हैं, ‘योगी कैबिनेट में स्वामी मंत्री तो बने, लेकिन विभाग काफी कमजोर मिला। इस बीच, केशव मौर्य भी डिप्टी सीएम तो बनाए गए, लेकिन योगी से उनके हमेशा मतभेद रहे। योगी और केशव के बीच की लड़ाई कई बार सामने आ चुकी है। ऐसे में स्वामी शिकायत भी किससे करते? यही कारण है कि कुछ नहीं तो यही सही मानकर स्वामी साढ़े चार साल मंत्री बने रहे। अब चुनाव नजदीक आते ही उन्होंने बदला ले लिया।’

2. पिछले साल नवंबर के आखिरी में एक मीडिया रिपोर्ट सामने आई थी। इसमें कहा गया था कि इस बार भाजपा अपने 100 से 150 विधायकों का टिकट काटने जा रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘भाजपा की नीतियां अन्य से बिल्कुल अलग हैं। यहां वही टिकेगा जो काम करेगा। जिन विधायकों ने काम नहीं किया है, उन्हें दोबारा मौका देने की जरूरत नहीं है।’

इस रिपोर्ट के आने के बाद से ही भाजपा के विधायकों में भगदड़ की स्थिति है। कई विधायक जिन्हें एहसास हो गया है कि इस बार उन्हें टिकट नहीं मिलेगा वह अपनी जमीन दूसरी जगह तलाश रहे हैं।

राजभर ने किया था दावा
समाजवादी पार्टी की सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने एक दिन पहले ही दावा किया था कि कई भाजपा के मंत्री और विधायक पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं। चुनाव नजदीक आते ही एक-एक करके सभी पार्टी छोड़ देंगे। चर्चा यह भी है कि मंत्री धर्म सिंह सैनी समेत 12 से ज्यादा विधायक पार्टी छोड़ने की कतार में हैं। इन विधायकों के भाजपा से टिकट कटने के भी आसार ज्यादा है।

सपा में क्यों जा रहे नेता?
भाजपा और बसपा छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने समाजवादी पार्टी जॉइन की है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एमपी सिंह बताते हैं कि इसका मुख्य कारण यह है कि इस बार का चुनाव भाजपा और सपा के बीच दिखाई दे रहा है।ऐसे में हर नेता अपना राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसा कर रहा है।

सपा को क्या फायदा मिलेगा?
प्रो. सिंह के अनुसार, ‘समाजवादी पार्टी ने इस बार चुनाव में एमवाई फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव के फार्मूले को किनारे लगाकर भाजपा की रणनीति अपनाई है। 2017 चुनाव में भाजपा ने गैर यादव ओबीसी वोटर्स को केशव प्रसाद मौर्य के जरिए अपने पाले में किया था। जिन क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी मजबूत नहीं था, वहां दलित वोटर्स ने भी भाजपा का ही साथ दिया। इस बार समाजवादी पार्टी यही करने की कोशिश कर रही है। सपा के लिए यादव वोटर्स पक्के माने जाते हैं। ऐसे में अब उनका फोकस गैर यादव और ब्राह्मण वोटर्स पर है। सपा ठाकुर वोटर छोड़कर अपना फोकस ओबीसी और ब्राह्मण वोटर्स पर कर रही है।’

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