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नरेन्द्र भाई के तराजू पर टके सेर तुलता देश। आप भी ले लो, 100 का माल 9 में?

"नया इंडिया" से 'पंकज शर्मा' का आलेख

यह बात मेरी समझ में आ क्यों नहीं रही है कि हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र भाई मोदी देश की बेशकीमती संपत्तियां बेच कर हम देशवासियों के लिए छह लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए दिन-रात एक क्यों कर रहे हैं?…. वे बेच क्या-क्या रहे हैं? 26,700 किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग 16 खरब रुपए में बिकेंगे। यानी एक किलोमीटर राजमार्ग के बदले मिलेंगे छह करोड़ रुपए।

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किसी और की अक़्ल पर तरस खाऊं, इस लायक अक़्ल तो ईश्वर ने मुझे दी नहीं है, इसलिए ख़ुद की ही अक़्ल पर तरस खा रहा हूं कि आख़िर यह बात मेरी समझ में आ क्यों नहीं रही है कि हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र भाई मोदी देश की बेशकीमती संपत्तियां बेच कर हम देशवासियों के लिए छह लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए दिन-रात एक क्यों कर रहे हैं?

छह लाख करोड़ रुपए यानी साठ खरब रुपए। यानी छह पद्म रुपए। यानी आज की दर पर 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर। जिस जैफ़ बेजोस को दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति माना जाता है, उसकी दौलत है क़रीब 200 बिलियन डॉलर। हमारे अपने धन्ना सेठ मुकेश भाई अंबानी की दौलत है 90 बिलियन डॉलर। और-तो-और, 65 बिलियन डॉलर के आसपास तो गौतम भाई अडानी की गठरी में भी हैं। तो ऐसा समझ लीजिए कि बेजोस के आधे से भी कम, अंबानी के तक़रीबन बराबर और अडानी से ज़रा-से ज़्यादा सिक्कों की चाहत में, बरस-दर-बरस एक-एक धागा पिरो कर तैयार किए गए भारतमाता के वस्त्र, बेचने को नरेंद्र भाई व्याकुल हैं।

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अब देखिए कि वे बेच क्या-क्या रहे हैं? 26,700 किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग 16 खरब रुपए में बिकेंगे। यानी एक किलोमीटर राजमार्ग के बदले मिलेंगे छह करोड़ रुपए। भारत में चार-लेन का राजमार्ग बनाने पर क़रीब 9 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर की लागत आती है और छह-लेन पर 14 करोड़ रुपए की। औसतन 10 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर की दर से ये राजमार्ग 27 खरब रुपए के तो हैं ही। फिर उस ज़मीन की कीमत का क्या, जिन पर ये राजमार्ग बने हैं? राजमार्ग की औसत चौड़ाई 30 मीटर तो होती ही है। यानी कम-से-कम 20 लाख एकड़ ज़मीन इन राजमार्गों के निर्माण में लगी है। आजकल गांव-देहातों में भी एक एकड़ ज़मीन का भाव क्या है? हालांकि मिलेगी कहीं नहीं, लेकिन अगर गई-बीती हालत में एक लाख रुपए एकड़ भी ज़मीन का भाव मान लें तो 2-3 खरब रुपए की ज़मीन है। तो न्यूनतम 30 खरब रुपए के राजमार्गों की बंदरबांट उसकी आधी कीमत पर होने वाली है।

भारतीय रेल के 400 स्टेशन और 150 रेलगाड़ियां भी 15 खरब रुपए में बेचे जाएंगे। आप अंदाज़ लगा सकें, इसलिए बता रहा हूं कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन 200 एकड़ ज़मीन पर बना हुआ है। देश की राजधानी में 48 रेलवे स्टेशन हैं और उनमें से 5 नई दिल्ली स्टेशन की ही तरह बड़े हैं। मुंबई में 146 रेलवे स्टेशन हैं। उनमें 5 बांबे सेंट्रल और चर्चगेट जैसे विशाल स्टेशन हैं। कोलकाता में सौ से ज़्यादा रेलवे स्टेशन हैं और उनमें हावड़ा जंक्शन और दमदम जैसे बड़े स्टेशन हैं। चेन्नै में 40 रेलवे स्टेशन हैं। इनमें चेन्नै सेंट्रल, रोयापुरम, चेन्नै फ़ोर्ट, एगमोर और मूर मार्केट के बड़े स्टेशन भी हैं। इंदौर, पुणे, मुगलसराय, सियालदाह, कानपुर, अंबाला, आगरा, इलाहाबाद, अमृतसर, फ़ाजिल्का, हाजीपुर, कल्याण, निज़ामाबाद, रतलाम, सिंकदराबाद और वाराणसी जैसे पचासों महत्वपूर्ण जंक्शन-स्टेशन भारतीय रेल के पास हैं।

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एक रेलवे स्टेशन को बनाने में अगर सवा सौ एकड़ ज़मीन भी औसतन लगती होगी तो बेचे जा रहे स्टेशन तक़रीबन 50 हज़ार एकड़ भूमि पर बने हैं। सेठों का समूह देहातों के स्टेशन तो ख़रीद नहीं रहा है। तो सोचिए कि शहरों में इन स्टेशनों की भूमि कितने की होगी? 75 करोड़ रुपए एकड़ का गया-बीता दाम भी लगा लें तो 40 खरब रुपए की तो ज़मीन-ही-ज़मीन हो गई। स्टेशनों की निर्माण लागत अलग से। फिर 150 ट्रेन भी बिक रही हैं। रेल का एक इंजन 20 करोड़ रुपए से कम में नहीं बनता है। एक ट्रेन में 24 डिब्बे होते हैं। एक डिब्बा कम-से-कम 3 करोड़ रुपए में बनता है। यानी एक ट्रेन तक़रीबन सौ करोड़ रुपए की पड़ती है। सो, ये रेलें हो गईं डेढ़ खरब रुपए की। फिर जिन पटरियों पर ये ट्रेनें चल रही हैं, उनकी निर्माण लागत आती है 125 करोड़ यानी सवा अरब रुपए प्रति किलोमीटर। जिन 400 स्टेशनों को बेचा जाएगा, उनके बीच बिछी रेल पटरियां 40 हज़ार किलोमीटर लंबी भी हों तो उनके निर्माण पर 500 खरब रुपए खर्च हुए होंगे। समझ गए न, साढ़े पांच सौ खरब रुपए की यह रेल संपत्ति पंद्रह खरब रुपए में नरेंद्र भाई अपने सहचर-पूजीपतियों के हवाले करने को ऐसे ही थोड़े ललक रहे हैं।

भारतीय गैस प्राधिकरण की आठ हज़ार किलोमीटर लंबी गैस पाइप लाइन तीन करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से निजी हाथों के हवाले की जाने वाली है। तीन साल पहले गैल ने पांच हज़ार किलोमीटर की पाइप लाइन बिछाने की परियोजना पर पच्चीस हज़ार करोड़ रुपए खर्च करने का बजट बनाया था। यानी पांच करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर। इस हिसाब से सेठों को मौजूदा पाइप लाइन क़रीब आधी कीमत पर हासिल हो जाएगी। इंडियन ऑइल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम की चार हज़ार किलोमीटर लंबी तेल पाइप लाइन भी ओने-पौने दामों पर बेची जा रही है। इस घालमेल में भी पोटली तो मोटे सेठों की ही और मोटी होगी।

160 कोयला खदानें और 761 दूसरे खनिज की खानें यानी कुल 961 खदानें नरेंद्र भाई मोदी ने औसतन 34 करोड़ रुपए प्रति खदान की दर से बेचने की तैयारी की है। बाकी सब तो छोड़िए, अकेले कोल इंडिया की कीमत आज सवा खरब रुपए की है। सरकारी मिनी-रत्न कंपनी सेंट्रल कोल फील्ड्स के आधारभूत ढांचे का मूल्यांकन 50 अरब रुपए का है। देश में 40 हज़ार करोड़ टन का कोयला भंडार है। एक टन कोयले की कीमत मोटे तौर पर 12-13 हज़ार रुपए प्रति टन है। अब आप ख़ुद ही हिसाब लगा लीजिए कि धन्ना सेठों की तिजोरियों की दीवारें कौड़ियों के बदले कितनी चौड़ी हो जाएंगी। सेकड़ों दूसरी खनिज खदानों से जो बरसेगा, सो, अलग से।

हमारे लिए हर हालत में अच्छे दिन लाने पर तुले बैठे नरेंद्र भाई देश के 25 सबसे अहम विमानतल 800 करोड़ रुपए प्रति हवाई अड़डा की औसत दर पर बेचने के लिए खोमचा सजाए बैठे हैं। उनके इस खोमचे पर देश के 9 सबसे अच्छे बंदरगाहों की 31 परियोजनाएं भी धन-पशुओं के लिए सवा तीन सौ करोड़ रुपए में एक की मामूली औसत दर पर उपलब्ध हैं। दो नेशनल स्टेडियम भी बिक्री के लिए नरेंद्र भाई के शॉपिंग मॉल में रखे हुए हैं। आप तो जानते ही होंगे कि एक स्टेडियम 50-60 एकड़ ज़मीन पर बनता है और ज़ाहिर है कि बड़े शहरों में ही होता है। उसमें बाकी निर्माण के अलावा पॉलिग्रास का मैदान बनाने पर भी कुछ तो खर्च आता ही होगा। लेकिन ये स्टेडियम भी नरेंद्र भाई की तराज़ू पर टके सेर तुल रहे हैं।

भारतीय संचार निगम की 2 लाख 86 हज़ार किलोमीटर लंबी टेलीकॉम फ़ाइबर लाइनें भी महज़ साढ़े 13 लाख रुपए प्रति किलोमीटर की दर पर साहूकारों को मिल जाएंगी। अब यह मत पूछिए कि यह संचार नेटवर्क कितने बरसों में, कितनी मेहनत से और किस कीमत पर हमारे-आपके पैसे से तैयार हुआ है। जिन्हें सब-कुछ बना-बनाया मिल रहा है, वे जानते हैं कि ऐसे सवालों को कैसे दबाया जाता है।

काशी की गंगा में तैरते शवों से अविचलित ठूंठ-हृदय से भारतमाता का चीरहरण रोकने की आस जिन्हें लगानी हो, लगाएं; मैं तो मानता हूं कि ‘हम देश नहीं बिकने देंगे’ का संकल्प कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे के गांव-गांव की चौपाल पर जो अब भी नहीं लेंगे, वे चित्रगुप्त के बहीखाते में अपने लिए नर्क-गमन का पन्ना आरक्षित कर रहे होंगे।

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