ब्रेकिंग न्यूज़सुधीर के बोल

*सुधीर के बोल :- भारत की अंतिम और सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या अगर हमने इसे हल कर लिया तो हम सब कुछ हल कर लेंगे।* *क्या है नई जनसंख्या नीति क्या है देश प्रदेश के लिये इसके मायने लिंक पर क्लिक कर देखें विशेष रिपोर्ट*

सुधीर के बोल : भारत की अंतिम और सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या और अगर हमने इसे हल कर लिया तो हम सब कुछ हल कर लेंगे। यह अंतिम समस्या है। यह अगर हल हो गई तो सब हल हो जाएगी। भारत के सामने बड़े से बड़ा सवाल जनसंख्या का है और रोज बढ़ता जा रहा है। भारत की आबादी इतने जोर से बढ़ रही है कि हम कितनी ही प्रगति करें, कितना ही विकास करें, कितनी ही संपत्ति पैदा करें कुछ परिणाम न होगा। क्योंकि जितना हम पैदा करेंगे उससे चौगुने मुंह हम पैदा कर देते हैं। सब सवाल वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं, हल नहीं होते।

trinetra
Sudhir-Shukla-ji-1
pooran-singh
bharat-singh-pradhan
op-shukla
mool-chand-pradhan-ji-scaled
jitendra-sing

 

हमारे संसाधन इतने कम हो गए है कि आज स्कूल, हॉस्पिटल, धर्मस्थल, सड़क पर जिधर देखो उधर लाइन लगी हुई है। आज भारत मे कुछ राज्यों ने अपने स्तर से इसमें पहल की है जो नाकाफी है क्या इसको केंद्रीयस्तर से लागू नही करना चाहिए?

 

पूर्व में 8 से 12 बच्चों का उतपन्न करना आम बात थी जब परिवार में खेती से लेकर अन्य कार्यों के लिए मैन पॉवर की आवश्यकता होती थी वर्तमान में तकनीकी का उपयोग प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है जहाँ मनुष्यों की आवश्यकता नहीं है। फिर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग व परमार्थी वर्ग ने 3 से 2 बच्चों के उतपन्न कर समाज के प्रति जिम्मेदार होने का उदहारण प्रस्तुत किया। समझदार व्यक्तियों ने क्वांटिटी की जगह क़्वालिटी को प्राथमिकता देते हुए अब 1 से 2 बच्चों की आवश्यकता समझी।

 

आज भारत में जितनी भे समस्या पाओगे उसके गर्भ में अनावश्यक जनसँख्या का विस्फोट मिलेगा।

 

आज तक हम संसाधनों को बढ़ाने में जोर देते रहे जबकी हमको कठोरता से जनसंख्या को नियंत्रण करना चाहिए था।

 

भारत के शासक पड़ोसी देश चीन को देख कर भी सबक नही ले पाएं, जिसने एक तरफ जनसँख्या नियंत्रित की वही दूसरी तरफ तकनीक को विकसित किया। आज वह विकसित अमेरिका के समकक्ष खड़ा हो गया है।

 

हम भारतीयों के पास जो इतिहास है उससे कुछ भी सीखा नहीं। मनुष्य इतिहास लिखता है, इतिहास बनाता है, लेकिन इतिहास से कुछ सीखता नहीं है। और यह इसलिए सबसे पहले कहना चाहता हूं कि इतिहास की सारी खोजों ने जो सबसे बड़ी बात प्रमाणित की है, वह यह कि इस पृथ्वी पर बहुत-से प्राणियों की जातियां अपने को बढ़ा कर पूरी तरह नष्ट हो गईं। इस जमीन पर बहुत शक्तिशाली पशुओं का निवास था, लेकिन वे अपने को बढ़ा कर नष्ट हो गए।

 

पृथ्वी के नीचे दबे हुए, पहाड़ों की कंदराओं में छिपे हुए, समुद्र की तलहटी में खोजे गए ऐसे बहुत से पशुओं के अस्थिपंजर मिले हैं जिनका अब कोई भी निशान शेष नहीं रह गया। वे कभी थे। दस लाख साल पहले उसके पूर्वज हाथियों से भी पांच गुने और दस गुने बड़े थे। वे सब कहां खो गए? इतने शक्तिशाली पशु पृथ्वी से कैसे विनष्ट हो गए? किसी ने उन पर हमला किया? किसी ने एटम बम, हाइड्रोजन बम गिराया?

 

उनके खत्म हो जाने की घटना बड़ी अदभुत है। उन्होंने कभी सोचा भी न होगा कि वे समाप्त हो जाएंगे जैसे आज मनुष्य नही सोचता है। परन्तु वे समाप्त हो गए अपनी संतति के बढ़ जाने के कारण! वे इतने ज्यादा हो गए कि पृथ्वी पर जीना उनके लिए असंभव हो गया। भोजन कम हुआ, पानी कम हुआ, लिविंग स्पेस कम हुई, जीने के लिए जितनी जगह चाहिए, वह कम हो गई। उन पशुओं को बिलकुल आमूल मिट जाना पड़ा।

 

ऐसी दुर्घटना आज तक मनुष्य-जाति के जीवन में नहीं आई है, लेकिन परिस्थितिया अनुकूल नहीं है अतः भविष्य में आ सकती है।

 

पूर्व में 10 से 12 बच्चों में 7-8 कई मृत्यु हो जाती थी, चिकित्सा अभाव में बीमारियों से मृत्यु कम आयु में हो जाती थी। आज कितनी भी बड़ी महामारी आ जाएं मेडिकल साइंस बड़े नुकसान को बचा लेती है।

फिर विज्ञान और आदमी की निरंतर खोज ने, और मृत्यु से लड़ाई लेने ने, वह स्थिति पैदा कर दी कि आज दस बच्चे पैदा होते हैं सुसंस्कृत, सभ्य मुल्क में, तो मुश्किल से एक बच्चा मर पाता है। स्थिति बिलकुल उलटी हो गई है। उम्र भी लंबी हुई। हमने मृत्यु दर कम कर दी जन्म दर बड़ा ली है प्रकृति असंतुलित हो गयी है।

 

उन्नीस सौ पैंतालीस में हिरोशिमा में एटम बम गिरा, एक लाख आदमी एटम बम से मरे। उस समय लोगों को लगा कि बहुत बड़ा खतरा है, अगर एटम बनता चला गया तो सारी दुनिया नष्ट हो सकती है। लेकिन आज जो लोग समझते हैं, वे यह कहते हैं कि दुनिया के नष्ट होने की संभावना एटम से बहुत कम है, दुनिया के नष्ट होने की संभावना, लोगों के मरने की, नष्ट होने की जो नई संभावना है वह है लोगों के पैदा होने से।

 

कुछ समाचार ऐसे भी तैर रहे है कि विश्व के 5 प्रमुख शक्तिशाली व्यक्ति का एजेंडा है कि पृथ्वी से 60% अनुपयोगी जनसंख्या को समाप्त कर प्रकृति को संतुलित किया जाए और कोरोना महामारी उसी का एक प्रयास है। अगर यह सही है तो तरीका बहुत घटिया है।

 

प्रत्येक मेरे जैसे विचारशील व्यक्ति हैं वे कहेंगे, जिस भांति हमने मृत्यु को रोका उस भांति हम जन्म को भी रोकें। और जन्म को रोकना बहुत हितकर हो सकता है, बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है–बहुत सी दिशाओं से।

 

आज नोयडा, गुरुग्राम, बीजिंग न्यूयार्क, बंबई में चौबीस घंटे कोहनी हिलाने की फुर्सत नहीं है, सुविधा नहीं है, कार्य से अवकाश नहीं है। ऐसी स्थिति सारी पृथ्वी की हो जानी सुनिश्चित है। परिणाम क्या होगा?

 

जीवन एक अवकाश चाहता है। जंगल में एक जानवर है, मुक्त, मीलों के घेरे में घूमता है, दौड़ता है। उसे कठघरे में बंद कर दें। और उसका विक्षिप्त होना शुरू हो जाता है। बंदर हैं, मीलों की यात्रा करते रहते हैं। पचास बंदरों को एक मकान में बंद कर दें। और उनका पागल होना शुरू हो जाता है। प्रत्येक बंदर को एक लिविंग स्पेस चाहिए, एक जगह चाहिए खुली, जहां वह जी सके।

 

आज हम लिविंग स्पेस खो चुके है। मेरे साथी जो मेरे साथ बिल्डर थे, आज भी प्रोजेक्ट्स की होड़ में जीवन खो रहे है। दुःख होता उनके मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य को देख कर उन्हें लगता संसाधन कम है जितने हो सकें उन्हें संग्रहित कर लो, संसाधन यही रह जाएंगे कल किसी के पास थे आज तुम्हारे पास है फिर कल और किसी के पास होंगे।

 

मनुष्य को एक खुला स्थान चाहिए, लेकिन संख्या अगर ज्यादा हो जाए तो खुला स्थान समाप्त हो जाएगा। आपने अनुभव किया होगा कि जब आप अकेले एक कमरे में होते हैं, तब आप एक मुक्ति अनुभव करते हैं। दस लोग आकर कमरे में सिर्फ बैठ जाएं–कुछ करें न, आपसे बोलें भी न, आपको छुएं भी न, सिर्फ दस लोग कमरे में बैठ जाएं–और आपके मस्तिष्क पर एक अनजाना भार पड़ना शुरू हो जाता है।

 

आप भीड़ में सचेत, तनावग्रस्त होते हो, एकांत में नैसर्गिक होते हो।

 

आप एक रास्ते पर चल रहे हैं अकेले में, कोई भी रास्ते पर नहीं है, तब आप दूसरे ढंग के आदमी होते हैं। और अगर उस रास्ते पर दो आदमी एक बगल की गली से निकल कर आ गए हैं, आप फौरन दूसरे आदमी हो जाते हैं, उनकी मौजूदगी आपके भीतर कोई तनाव पैदा कर देती है।

 

बाथरूम में आप बिलकुल दूसरे आदमी होते हैं। बूढ़ा भी बाथरूम में बच्चे जैसा उन्मुक्त हो जाता है। बूढ़े भी बाथरूम के आईने में बच्चों जैसी जीभें दिखाते हैं, मुंह चिढ़ाते हैं, नाच भी लेते हैं। लेकिन अगर पता चल जाए कि की-होल से, कोई झांक रहा है, तो वे फिर एकदम बूढ़े हो जाएंगे। उनका बचपन खो जाएगा। फिर वे सख्त और मजबूत और बदल जाएंगे।

 

एक बहुत बड़ी मजे की बात है, आदमी जितने बढ़ते हैं उतना व्यक्तित्व कम हो जाता है। भीड़ में कोई आदमी इंडिविजुअल नहीं होता, व्यक्ति नहीं होता। भीड़ में नाम मिट जाता है। अकेला व्यक्ति का बुरे काम की संभावना बहुत कम होती है।

अगर किसी मस्जिद को जलाना हो, तो अकेला आदमी नहीं जला सकता, कितना ही पक्का हिंदू क्यों न हो। और अगर किसी मंदिर में राम की मूर्ति तोड़नी है, तो अकेला मुसलमान नहीं तोड़ सकता, कितना ही पक्का मुसलमान क्यों न हो। भीड़ चाहिए।

 

अगर पृथ्वी पर भीड़ बढ़ती चली गई तो व्यक्ति विदा हो जाएंगे, भीड़ रह जाएगी। व्यक्तित्व क्षीण हो जाएगा। क्षीण हुआ है। खत्म हो जाएगा।

 

इसलिए मेरे सामने परिवार-नियोजन जैसी चीज केवल आर्थिक मामला नहीं है, बहुत गहरे अर्थों में धार्मिक मामला है।

 

यह देश बड़ा अजीब है। हम कहते हैं कि हम धर्म-निरपेक्ष हैं, और फिर भी सब चीजों में धर्म का विचार करते हैं। सरकार भी विचार रखती है! हिंदू कोड बिल बना हुआ है, वह सिर्फ हिंदू स्त्रियों पर ही लागू होता है! यह बड़ी अजीब बात है। सरकार जब धर्म-निरपेक्ष है तो मुसलमान स्त्रियों को अलग करके सोचे, यह बात ही गलत है। सरकार को सोचना चाहिए केवल स्त्रियों के संबंध में। मुसलमान को हक है कि वह चार शादियां करे, किंतु हिंदू को हक नहीं! तो मानना क्या होगा? यह धर्म-निरपेक्ष देश कैसे हुआ? हिंदुओं के लिए अलग नियम और मुसलमान के लिए अलग नियम नहीं होना चाहिए।

नियम धर्म और जाति के आधार पर बनेंगे तब असमानता रहेगी फिर वह क्यो न असमानता मिटाने के लिए ही हो।

 

पहली तो बात मैं यह मानता हूं कि संतति-नियमन अनिवार्य होना चाहिए।

 

दूसरी बात मैं यह मानता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति को बच्चे पैदा करने का अधिकार जब तक विशेषज्ञ न दे दें, तब तक बच्चे पैदा करने का अधिकार किसी को भी नहीं रह जाना चाहिए।

असल में शादी के पहले ही हर गांव में, हर नगर में सलाहकार समिति होनी चाहिए डाक्टर्स की, विचारशील मनोवैज्ञानिकों की, साइकोएनालिस्ट्स की, जो प्रत्येक व्यक्ति को यह हक दे कि तुम अगर दोनों शादी करते हो तो तुम बच्चे पैदा कर सकोगे या नहीं कर सकोगे।

 

एक आदमी बारह बच्चे पैदा करता है तो कभी भी बहुत प्रतिभाशाली बच्चे पैदा नहीं कर सकता। अगर एक ही बच्चा पैदा करे तो उसके बारह बच्चों की सारी प्रतिभा एक में भी प्रवेश कर सकती है।

 

यह जरूरी नहीं है कि मेरी सारी बातें मान ली जाएं। इतना ही काफी है कि आप मेरी बात पर सोचें, विचार करें। अगर इस देश में सोच-विचार आ जाए तो शेष चीजें अपने आप नैपथ्य चली जाएंगी। मेरी बातें खयाल में लें और उस पर सूक्ष्मता से विचार करें, तो हो सकता है कि आपको यह बोध आ जाए कि परिवार-नियोजन की अनिवार्यता कोई साधारण बात नहीं है जिसकी उपेक्षा की जा सके। वह जीवन की अनेक-अनेक समस्याओं की गहनतम जड़ों से संबंधित है। और उसे क्रियान्वित करने की देरी पूरी मनुष्य-जाति के लिए आत्मघात सिद्ध हो सकती है।

trinetra
Sudhir-Shukla-ji-1
pooran-singh
bharat-singh-pradhan
op-shukla
mool-chand-pradhan-ji-scaled
jitendra-sing

Related Articles

Back to top button
Close
Close