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नयति के खिलाफ मजिस्टे्टी जांच के आदेश, कोरोना ईलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलने का आरोप

निधि रस्तोगी की शिकायत पर मथुरा प्रशासन ने नयति मेडिसिटी के खिलाफ जांच बिठा दी है। नयति मेडिसिटी के खिलाफ यह कोई पहली शिकायत नही है। नयति ओर विवादों का चोली दामन का साथ है। नयति मरीजों से बीमारी के नाम मोटी रकम तो वसूलता ही है। तीमारदार यदि अस्पताल प्रशासन से इलाज में लापरवाही की शिकायत करता है तो नयति के कर्मचारी तीमादारों के साथ अभद्रता व मारपीट तक पर उतारू हो जाते है। गोवर्धन विधायक कारिन्दा सिंह व भाजपा महानगर अध्यक्ष विनोद अग्रवाल के साथ भी नयति स्टाफ अभद्रता कर चुका है। ऐसा एक दो ही मामला नही है। अक्सर ऐसा आये दिन देखने को मिलता है।

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निधि रस्तोगी ने उर्जा मन्त्री श्रीकांत शर्मा को दिये शिकायती पत्र मे आरोप लगाया था कि उसके पति को 27 अप्रेल को नयति मेडिसिटी मे भर्ती कराया गया था। ईलाज के नाम पर उससे 6 लाख रूपये जमा करा लिये गयें है। अस्पताल प्रशासन उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई भी सन्तोष जनक जानकारी नही दे रहा।
अस्पतालों पर कोरोना काल मे अंगो की तस्करी का आरोप लगा रहा है यह कितना सही है व कितना गलत है ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन कोरोना से मरने वालों के शरीर से निकलने वाला खून बहुत सारे सवाल पैदा कर रहा है। आखिर ऐसी क्या कारण है जो मृतक का शरीर खून से लथपथ मिलता है।

कोरोना काल मे धरती के भगवान कहे जाने वाले डाक्टर लूट पर उतारू है। वे आपदा मे अवसर का कोई भी मौका नही छोडना चाहते है। जिस रेमडेसिविर इंजेक्शन को डब्ल्यू एचओं ने कोरोना ईलाज में प्रयोग के लिये उपयोग हीन बता दिया वही इंजेक्शन देश मे इन डाॅक्टरों ने ब्लैक मे एक एक लाख रूपये में बिकवा दिया।
मरीज डाॅक्टर को भगवान समझता है। वो नही जानता उसके रोगी को क्या रोग है क्या उसका ईलाज है। डाॅक्टर जो भी कहता है तीमारदार उसकी मान लेता हे। इसी बात का ये लोग फायदा उठाते है। नयति अपने मंहगे ईलाज के लिये विख्यात है। लोगो मे नाराजगी इस बात को लेकर है कि भरपूर पैसा खर्च होने के बाबजूूद अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से मरीज मर जाता है। लोगो में गुस्सा इस बात को लेकर भी है। अस्पताल प्रशासन जिस मरीज को एक दिन पहले तक ठीक बताता है तबीयत में सुधार बताता है। अगले दिन कह देता है कि मरीज मर चुका है। अस्पतालों को लेकर लोगों मे भारी गुस्सा है तमाम शिकायतें हे। तमाम आरोप है क्या प्रशासन इन बडे मगरमच्छों के खिलाफ कार्रवाही कर पायेगा या ये केवल कागजी घोडे साबित होंगे जो लोगो के आक्रोश को देखते हुए दोडा दिये गये है। लोगों का आक्रोश शान्त हो जाने के बाद जांच की औपचारिकताऐ पूरी कर अस्पतालों केा क्लीन चिट दे दी जायेगी। ये अभी भविष्य के गर्त में।

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