चुनाव आयोग की जीवन की कीमत पर तन्त्र बचाने की कवायद, सरकार का धर्म था जीवन बचाना, या कुम्भ जैसा धार्मिक आयोजन? आईपीएल जरूरी या जीवन? क्या होगा आगे। परिणाम पर प्रकाश डालता आलेख:- सुधीर के बोल
चुनाव आयोग की जीवन की कीमत पर तन्त्र बचाने की कवायद, सरकार का धर्म था जीवन बचाना, या कुम्भ जैसा धार्मिक आयोजन? आईपीएल जरूरी या जीवन? क्या होगा आगे। आग उगलता आलेख :- सुधीर के बोल
#सुधीरकेबोल : धर्म जीवंत जीवन देता है। धर्म स्वतंत्रता देता है। धर्म अभय प्रदान करता है। धर्म स्वास्थ्य देता है और अगर आपको उपरोक्त बातों में से कुछ प्राप्त न हो तो समझना वह धर्म नहीं पाखंड है।
चुनाव आयोग का धर्म है लोकहित के लिए चुनाव से तंत्र स्थापित करें।
सरकार (तंत्र)का धर्म है की लोक के लिए जीवन व उसके उपयोगी संसाधनो को उपलब्ध कराएं।
भारत मे आई पी एल संस्था का धर्म लोक के लिए मनोरंजन उपलब्ध कराने का है।
यह तीनों ही संस्था अपने धर्म पर नहीं है, क्योंकि इन तीनों संस्थाओ पर कोरोना नामक बीमारी फैलाने के अपराध में शामिल है। इनके गलत स्वार्थपरक निर्णयों से देश के लाखों लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हुआ है।
भारत में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ोतरी दर्ज हो रहे है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका एक कारण अलग-अलग वजहों से बड़ी संख्या में लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होना है।
क्रेंद सरकार को देश के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने फरवरी 2021 में ही चेतावनी जारी कर दी थी, डॉ. रमन गंगाखेडकर ने कहा, ‘यदि कोई इस भ्रम में है कि कोविड-19 का चरण जल्द ही समाप्त हो जाएगा, तो वे गलत हैं। कोरोना का संक्रमण 2020 में भी था और यह वैसे ही 2021 में भी लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह एक बहुत ही जटिल मुद्दा है और हमें हर मामले को बहुत सावधानी से संभालना चाहिए।’
उपरोक्त चेतावनी जब अलग अलग स्रोत से सरकार को मिल रही थी तब स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, यहां कोविड से ठीक होने की दर 97.27 फीसदी हो चुकी थी। देश में जब कोरोना के सक्रिय मामलों की दर महज 1.32 फीसदी ही रह गई थे। फिर भी सरकारें कुंभ जैसे तथाकथित आयोजनों को जोर शोर से कर भीड़ एकत्र कर रही थी। जो जीवन नही मौत बाँटने के उत्तरदायी है।
इसी प्रकार चुना आयोग तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज कर कोरोना नामक मौत बाँटने को उतारू था। 27 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए ज़िम्मेदार है और इसके अधिकारियों पर कोविड-19 के मानकों का पालन किए बिना राजनीतिक दलों को बड़े पैमाने पर रैलियों की अनुमति देने के लिए संभवत: हत्या का मुक़दमा चलाया जाना चाहिए। निर्लज्ज चुनाव आयोग इसके बाद भी कोरोना के प्रति लापरवाह रहा और उत्तरप्रदेश के जिलापंचायत चुनाव में मतगणना केम्पों के बाहर हज़ारों लोगों की भीड़ एक दूसरे पर गिरी जा रही थी, इनमें से कितने लोग कोरोना बम साबित होंगे। चुनाव ड्यूटी करनेवाले लगभग 700 शिक्षकों की मृत्यु हो चुकी है और इनमें एक गर्भवती महिला भी शामिल है। चुनाव आयोग लोक का तंत्र स्थापित कर रहा है या मौत का तंत्र?
आईपीएल जैसी संस्था सरकार व सुप्रीम से भी ऊपर हो गयी मनोरंजन जरूरी है या जीवन? इस संस्था को समझ नहीं आता।
कोरोना के कहर आज आईपीएल तब समझ आया जब कोलकाता के दो खिलाड़ी कोरोना पॉजिटिव पाए गए है। सोमवार को होने वाले कोलकाता नाइट राइडर्स और बेंगलुरु के मैच को रद्द कर पड़ा है। अब तक आईपीएल कितने लोगों को बीमारी बाँट चुका होगा।
आज देश में कोरोना की दूसरी भयभीत करने वाली लहर के उपरोक्त तीनों संस्थाएं मौत के थोक विक्रेता के रूप में उभर कर प्रगट हुए है। जनता को यह भलीभाँति समझ लेना चाहिए कि सरकार को सत्ता चाहिये और जनता को जीवन अतः वह अपना जीवन की कीमत पर सत्ता बनाएंगी या सत्ता की कीमत पर जीवन?