
वृन्दावन। रसिकों की भूमी में एक तांत्रिक बाबा को इतनी तबज्जो क्यों? आलेख पढ कर अपनी राय अवश्य दें।
उत्तर प्रदेश सरकार ने वृन्दावन कुम्भ को दिव्य व भव्य बनाने मे कोई कोर कसर नही छोडी। हर तरह की सुविधायें शासन प्रशासन के द्वारा कुम्भ मे आने वाले श्रद्वालुओं के लिये उपलब्ध कराई गयी है। वृन्दावन कुम्भ का ब्रजवासी भी भरपूर आनंद ले रहे हैं पर सबको, विशेषकर संतों को ये बात कचोटती रही है कि इस कुम्भ का पूरा फोकस देवरहा बाबा पर रहा। देवरहा बाबा का ब्रज की संस्कृति व भक्तिरस परम्परा से कोई नाता नहीं रहा है। वह ब्रज के किसी भी स्थापित सम्प्रदाय से जुड़े नहीं थे। ब्रज के रसिक सन्तों के जीवन पर आधारित किसी ग्रन्थ में देवरहा बाबा का कोई उल्लेख नहीं है। वे ब्रज के बाहर से आये एक तांत्रिक थे इसलिये वृन्दावन की सीमा के बाहर यमुना के बीच मचान बनाकर रहते थे।
उल्लेखनीय है कि ब्रज में किसी सन्त के नाम से आज तक कोई घाट नहीं बना, क्योंकि ब्रज की सन्त परम्परा में भगवान् श्री राधाकृष्ण की लीला स्थलियों का ही महत्त्व है। उन्हीं के नाम पर घाट, वन या कुण्ड बने हैं। अपने प्रचार से ब्रज के सभी सन्त बचते हैं। वैसे मध्ययुग में वृन्दावन के तीन महान् सन्त हुये हैंः स्वामी हरिदास जी, स्वामी हित हरिवंश जी व स्वामी हरिराम व्यास जी। इन तीनों के ही नाम से कोई घाट वृन्दावन में नहीं है। इनके अतिरिक्त हर भक्ति सम्प्रदाय के अनेक महान् सन्त पिछले हजारों वर्षो में ब्रज में हुये हैं जिनके दर्शन करने सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल व महात्मा गांधी तक ब्रज में आए थे। श्री चैतन्य महाप्रभु जी तथा महापभु श्री वल्लभाचार्य जी जैसी विभूतियों का भी ब्रज से सम्बन्ध रहा है। किन्तु उनके भी नाम से भी यहां कोई घाट नहीं बना। इसलिये पूरे ब्रज मण्डल में ‘देवरहा बाबा घाट’ और ‘ देवरहा बाबा द्वार’ या ‘ देवरहा बाबा मार्ग’ व ‘ देवरहा बाबा गौशाला’ आदि के बनने से ब्रजवासियों, सन्तों व भक्तों में असहजता है।
तकनीकि रूप से भी ये घाट गलत बना है?
दुनिया में कहीं भी नदियों की मध्यधारा में कभी कोई घाट नहीं बनता। जबकि ‘देवरहा बाबा घाट’ यमुना जी की मध्यधारा में बनाया गया है, जो पहली बाढ़ में ही बह जायेगा। इस घाट के कारण बाढ़ का पानी इतनी तीव्रता से बहेगा कि किसानों के खेतों की फसल बहाकर ले जायेगा। इसे बनाने में लगभग 4 करोड़ रूपये का खर्च आया है। अभी तो यमुना जी सूखी हैं तो भी काफी दूर चलकर इस घाट तक जाना पड़ता है। वर्षाकाल में जब यमुना जी का जल स्तर बढ जायेगा तब इस घाट तक कोई पहॅुच भी नहीं पायेगा, क्योंकि तब यह जलमग्न हो जायेगा इसलिये इसे यमुना जी के मध्य में बनवाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। वर्षाकाल में यह बह जायेगा इसकी भी प्रबल सम्भावना है। क्या मात्र शैलजाकान्त मिश्र जी के गुरू होने के कारण देबरहा बाबा को कुम्भ में इतनी प्रमुखता देना उचित है? अपने विचार कमेंट बाॅक्स मे अवष्य लिखें। आखिर पता तो चले कि क्या उचित है ओर क्या अनुचित
निम्न प्रष्नो पर अपनी राय अवष्य दें।
प्र0 1 रसिक संतों की भूमि में, कुम्भ जैसे दिव्य व भब्य आयोजन में देवरहा बाबा को इतनी प्रमुखता देना उचित है?
प्र0 2 तकनीकी रूप से देवरहा बाबा घाट का निर्माण सही हुआ है? क्या यह यमुना के तीव्र प्रवाह में नही बहेगा अथवा तीव्र प्रवाह मे श्रद्वालु वहां स्नान के लिये पहुच पायेंगे।
प्र0 3 क्या दिव्य व भब्य कुम्भ में देवरहा बाबा को प्रमुखता सिर्फ इस लिये दी गयी है कि वे शैलजाकान्त जी के गुरू है।