देशसुधीर के बोल

डीजल के बढ़ते दाम, जनता पस्त, सत्ता मस्त, विपक्ष मौन।

भारत देश में प्याज़ महँगी होने पर सत्ता परिवर्तन का इतिहास है और आज बेतहाशा मँहगाई होने पर और जनता की आय निचले स्तर पर जाने के बाबजूद इस पर चर्चा न होने का क्या कारण है?

trinetra
Sudhir-Shukla-ji-1
pooran-singh
bharat-singh-pradhan
op-shukla
mool-chand-pradhan-ji-scaled
jitendra-sing

 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोग वाकई में प्रधानमंत्री मोदी से इतने संतुष्ट हैं कि वे तेल की कीमतों में लगातार जारी महंगाई से जरा भी चिंतित नहीं हैं? ऐसा नहीं

विपक्ष कमजोर है और उसे इसी का फायदा मिलता है। सत्ता पक्ष जनता को भावनात्मक मुद्दों में उलझाने में लगातार सफल रहा है और देश का एक बड़ा हिस्सा मानसिक रूप से सत्तापक्ष की गिरफ्त में है। जो आर्थिक तौर पर टूट चुका है फिर भी उसे विश्वास है इस कष्ट के लिये सत्ता जिम्मेदार नही है।

“इस तरह के मसलों पर विपक्ष को जोरदार तरीके से आवाज उठानी चाहिए, लेकिन विपक्ष बड़े तौर पर बिखरा हुआ है.” पहले भी इस तरह की मांग उठी थी कि सरकार को ईंधन की कीमतों पर अपना नियंत्रण फिर से करना चाहिए और आम लोगों को राहत देनी चाहिए। चूँकि जनता को यह विश्वास है कि मौजूद सत्ताधारी दल एक मात्र दल सर्वोत्तम है इसलिये वह तमाम आर्थिक तंगी होने पर भी विपक्ष को देशद्रोही समझता है।

महंगाई की बात करें तो इसका कारण सरकारी टैक्स, ईंधन की कीमतें हर राज्य में अलग-अलग हैं. ये राज्य की वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) दर, या स्थानीय करों पर निर्भर करती हैं. इसके अलावा इसमें केंद्र सरकार के टैक्स भी शामिल होते हैं।

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) के 16 फरवरी 2021 को दिल्ली के लिए जारी किए गए पेट्रोल की कीमतों के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल की बेस कीमत 32.10 रुपये प्रति लीटर बैठती है। इसमें पेट्रोल की बेस कीमत 31.82 रुपये के साथ डीलरों पर लगने वाला 0.28 रुपये प्रति लीटर का ढुलाई भाड़ा शामिल है।

अब इस पर 32.90 रुपये एक्साइज़ ड्यूटी लगती है। इसके बाद 3.68 रुपये डीलर कमीशन बैठता है। अब इस पर वैट लगता है जो कि 20.61 रुपये प्रति लीटर बैठता है।

ग्राहकों को 53.51 रुपये टैक्स के तौर पर देने पड़ते हैं। सरकार का ख़र्च काफी बढ़ा हुआ है जिसके कारण भारीभरकम टैक्स लग रहे है।

महामारी के दौरान कच्चे तेल के दाम नीचे आए, ऐसे में इसी हिसाब से पेट्रोल के दाम भी गिरने चाहिए थे, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया।

सरकार के पास पेट्रोलियम उत्पादों के दाम घटाने के विकल्प हैं इनमें कीमतों को डीरेगुलेट करने और इन पर टैक्स घटाने के विकल्प शामिल हैं।

पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है ख़ासतौर पर ग़रीब और हाशिए पर मौजूद तबके के लिए ज्यादा मुश्किलें बढ़ती हैं।

पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी के चलते क्रूड की कीमतें नीचे आई हैं, लेकिन भारत में ईंधन के दाम कम नहीं हुए हैं कारण बढ़ते कर।

भारत के पड़ोसी देशों समेत दुनिया के कई देशों में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम हैं. श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान और यहां तक कि आर्थिक रूप से मुश्किलों के भयंकर दौर में घिरे हुए पाकिस्तान में भी पेट्रोल सस्ता है. इसके बावजूद भारत में ईंधन की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं।

अक्तूबर 2014 में डीजल की कीमतों को भी डीरेगुलेट कर दिया गया

हम 2002 की कीमतों से तुलना करें तो, पेट्रोल की कीमतें 224 फीसदी बढ़ी हैं. इसी तरह से डीजल की कीमतों में 366 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

अगर रसोई गैस के सिलेंडर की बात करें तो 17 मार्च 2002 को देश में इसकी कीमतें 240.45 रुपये प्रति सिलेंडर पर थीं।

रसोई गैस सिलेंडर की कीमत बढ़कर 769 रुपये हो गई है. इसकी कीमतें 220 फीसदी ऊपर चढ़ी हैं।

पेट्रोलियम पदार्थों और खासतौर पर डीज़ल की कीमतें बढ़ने से आम लोगों के लिए ज़रूरत की चीजों के दाम भी बढ़ते हैं।

रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था।

trinetra
Sudhir-Shukla-ji-1
pooran-singh
bharat-singh-pradhan
op-shukla
mool-chand-pradhan-ji-scaled
jitendra-sing

Related Articles

Back to top button
Close
Close